आँसू बहाने से अन्तःकरण शुद्ध होगा, याद कर लो सब लोग, रट लो
ये कृपालु का वाक्य। भोले बालक बनकर रोकर पुकारो, राम दौड़े आयेंगे। सब ज्ञान फेंक
दो, कूड़ा-कबाड़ा जो इकट्ठा किया है। अपने को अकिंचन, निर्बल, असहाय, दींन हीन, पापात्मा
रेअलाइज करो, भीतर से, तब आँसू की धार चलेगी, तब अन्तःकरण शुद्ध होगा, तब गुरु कृपा
करेगा। गुरु की कृपा से राम के दर्शन होंगे, राम का प्यार मिलेगा और सदा के लिये आनन्दमय
हो जाओगे
'इस जन्म में न हो, अगले जन्म में भगवान को पाऊँगा' यह कैसी
बात है? ऐसा ढीलाढाला सुस्त भाव नहीं रखना चाहिए। उनकी कृपा से उन्हें इसी जन्म में
प्राप्त करूँगा - मन में इस तरह का जोर रखना चाहिए, विश्वास रखना चाहिए। इसके बिना
नहीं होगा। ढीलाढाला भाव अच्छा नहीं। अपने में जोर लाकर, विश्वास के साथ कहो - 'उन्हें
जरुर पाऊँगा, अभी इसी क्षण पाऊँगा!'
कमर कस कर जिद कर लो कि मुझे अपने प्राणवल्लभ श्रीकृष्ण से मिलना
ही है। इसी जन्म में ही, नहीं-नहीं इसी वर्ष, नहीं-नहीं आज ही मिलना है। यह व्याकुलता
बढ़ाना ही वास्तविक साधना है। इस प्रकार यह व्याकुलता इतनी बढ़ जाय कि अपने प्रियतम
से मिले बिना एक क्षण भी युग के सामान बीतने लगे, बस यही साधना की चरम सीमा है। इसी
सीमा पर भगवत्कृपा, गुरु कृपा द्वारा दिव्य प्रेम मिलेगा।
सुनहु मन ! यह ऐसो संसार |
बांधि अधर्मिन और विकर्मिन, पठवत नरक मझार |
धर्मिन कर्मिन स्वर्ग पठावत, सोउ क्षणभंगुर यार |
योगिन कहँ अणिमादि सिद्धि दै, देत छाँड़ि मझधार |
ज्ञानिन कहँ तजि देत सदा को, दै तिन मुक्ति असार |
... प्रेम ‘कृपालु’ पाव सोइ जोइ भज, नागर नंदकुमार ||
भावार्थ- अरे मन ! यह मायात्मक संसार का स्वरूप सुन | यह संसार
अधर्मियों एवं विकर्मियों को बाँधकर नरक भेज देता है | धर्मात्माओं एवं कर्मकाण्डियों
को स्वर्ग भेज देता है किन्तु वह भी क्षणभंगुर ही है | योगियों को अणिमा, लघिमा आदि
सिद्धियाँ देकर बीच में ही छोड़ देता है | ज्ञानियों को चार प्रकार की मुक्ति देकर सदा
के लिए सुख एवं दुख दोनों से वंचित कर देता है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि प्रेम
तो एकमात्र उसी को प्राप्त होता है जो श्यामसुन्दर का निरन्तर भजन करता है |
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