राधे
मोहिं, चरण कमल रज कीजै |
तुव
मानिनि हित पिय दृग-जल सों, जा पदरज नित भीजै |
जा पावन
पदरज पावन को, कमलाहू कर मीजै |
जेहि
लगि विधि वरदान माँगि कह, नाथ ! सोइ रज दीजै |
बिनु
कारण करुणाकारिणि तुम, मम पुकार सुनि लीजै |
अंध
‘कृपालु’ पाय दृग जब ही, तब ही सही पतीजै ||
भावार्थ-
हे रसिकन जीवनमूरि राधिके ! मुझे अपने युगलचरण कमलों की धूलि बना दीजिए | तुम जब मान
करोगी तथा श्यामसुन्दर तुम्हारे चरणों पर सिर रखकर रोते हुए मनाने जायेंगे, तब मैं
चरणधूलि बनी हुई प्रियतम के आसुओं से भीजा करूँगी | जिस पवित्र चरण धूलि के लिए महालक्ष्मी
करोड़ों कल्प तप करके भी लालायित रहती हैं, एवं हाथ मींजती रहती हैं, जिस चरण धूलि के
लिए सृष्टिकर्ता ब्रह्मा वरदान माँगकर बड़भागी बनते हैं, वही तुम्हारी चरण धूलि मैं
भी बनना चाहती हूँ | तुम अकारण ही दया करने वाली हो, अतएव मेरी इस पुकार को अवश्य ही
सुन लो | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि ‘अंधा जब आँख पाय तब पतियाय’ इस लोकोक्ति के
अनुसार जब तुम मेरी पुकार सुन लोगी एवं मुझे अपने चरणों की धूल बना लोगी, तब ही मुझे
तुम्हारे अकारण-करुण नाम पर विश्वास होगा |
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