मन ! क्यों नहि हरि गुन गा रहा |



मन ! क्यों नहि हरि गुन गा रहा |
यह जग है इक भूल भुलैया, क्यों तू धोखा खा रहा |
भुक्ति मुक्ति है प्रबल पिशाचिनी, क्यों इनमे भरमा रहा |
सुत वित नारिन त्रिविध तिजारिन, क्यों इनको अपना रहा |
इन इंद्रिन विषयन-विष पी मन, क्यों इतनो हरषा रहा |
नर तनु पाय 'कृपालु' भजन करू, यह जीवन अब जा रहा |

भावार्थ - अरे मन ! तू श्यामसुंदर का गुणगान क्यों नही करता? इस भूल भुलैया के खेल वाले संसार में तू क्यों धोखा खा रहा है? मुक्ति एवं भुक्ति ये दोनों अत्यंत प्रबल चुडैलें हैं, तू इनके चक्कर में क्यों आ रहा है? स्त्री, पुत्र, धन, यह तीनों तिजारी के समान हैं. तू इनको क्यों अपना रहा है? 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि यह मनुष्य का शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है, यह चार दिन का जीवन जा रहा है, अतएव शीघ्र ही श्यामसुंदर का भजन कर...

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