लतन में ठाढ़ो सुंदर श्याम |
ग्रीवा-कटि-पद भंगि मनोहर, लजवत कोटिन
काम |
मुरली मधुर अधर धरि टेरत, लै ललितादिक
नाम |
परिमल-सारस-केशर-चंदन, चर्चित तनु
अभिराम |
नख शिख सब श्रृंगार सुशोभित, सुषमा
सींव ललाम |
लखि ‘कृपालु’ छवि छकी रहें नित, सिगरी
ब्रज की बाम ||
भावार्थ- लताओं के बीच में लाल जी
खड़े हैं | वे ग्रीवा, कमर एवं पैरों को अति विचित्र ढंग से झुकाए हुए इतने सुन्दर लगते
हैं कि उनके आगे करोड़ों कामदेव लज्जित हो जाते हैं | वे ललितादिक सखियों का नाम विश्व
विमोहिनी मुरली में लेते हुए मुख से परम मधुर मुरली की तान छेड़ रहे हैं | अगर, कस्तूरी
केसर, चंदन आदि का सुगन्धित लेप शरीर में लगा हुआ है | नख से शिख तक समस्त श्रृंगार
से शोभित हो रहे हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि ऐसे ललित त्रिभंगी लाल को देख
कर समस्त ब्रजगोपांगनाएं निरन्तर ही प्रेम-विभोर रहती हैं |
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