कौन कृपालु ! हमरो तुम्हरो नात !

 
कौन कृपालु ! हमरो तुम्हरो नात !
तुम सोवत निज लोक चैन ते , हम रोवत दिन रात !
हम पल छीन तुम बिनु नित तलफत , तुम नहीं पूछत बात !
नैन निगोरे बरजत मोरे , और और अकुलात !
रोम रोम याचत होते ,मोर कृपालु गात !
जनि 'कृपालु' कृपालु तोहि हौ, प्रीति करी पछितात !
पद ब्याख्या :-
हे महाराज जी ये कैसा नाता है हमारा और आप का , आप अपने लोक गोलोक में चैन से सो रहे है , हम आप के बिना दिन रात आप के याद में रो रहे है ! रह रहे के पल पल आप का याद आता है , और ये मन ब्याकुलता से तलफने लगता है ,और आप एक बार भी नहीं पूछते कि बात क्या है कितना भी मन को मानते है कि आप मनगण में ही है, कितना भी रोकने का प्रयास करे हम जब जब कही आप कि तस्बीर दिखती है नैनं से नीर बहने लगता है ! आप ही तो कहते है जो प्रीती करता है वोह पछिताता है ! और हम भी !!

No comments:

Post a Comment